होली, चोली और हमजोली- 5

बॉस फक़ स्टोरी में पढ़ें कि खुद को नशे में धुत्त प्रदर्शित करके मैंने अपने बॉस से चुदाई करवा ली. वो मेरी गांड भी मारना चाहते थे पर वो घुसा नहीं पाए.

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मेरी कहानी के चौथे भाग
प्यासी चूत को सफाई कर्मचारी का लंड मिला
में आपने पढ़ा कि मैं वीनस अपने रिसोर्ट में स्विमिंग पूल पर वहां के एक अदने से कर्मचारी से चुद रही थी. तभी मेरे बॉस ने हमारी हरकत देख ली और वे मुझे नंगी को ही अपने रूम में ले आये और मुझे चोद दिया.

दीपक निरोध के अंदर मेरी चूत में ही झड़ गए।

मैं बता नहीं सकती, उनका लंड लेकर बड़ा सुकून मिला।
इस आदमी को सुबह से चोदने के ख्याल से में गीली हुए जा रही थी।

अब आगे बॉस फक़ स्टोरी:

दीपक के हटते ही धीरज निरोध लगा मुझ पर चढ़ गया।
और दीपक बगल में निढाल लेट मेरी धीरज से होती चुदाई देख रहे थे।

“रोहित और अंदर … आह्ह … और जोर से!” मैं धीरज को गति देने को कह रही थी।

दो मर्दों (पूल कर्मचारी और दीपक) का पानी निकालने के बाद भी … मैं अब तक झड़ी नहीं थी।
मैं दीपक से एक बार और चुद के उसके साथ झड़ना चाहती थी।

धीरज एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मेरी चूत चोदने में व्यस्त था.
दीपक मेरे चूचे सहला रहे थे।

धीरज मेरा दाना अपनी उंगली से मसलने लगा, मैं कामुकता से कराहने लगी.
ऐसा लगा कि अब और देर नहीं रुक पाऊंगी।

धीरज चोदने के खेल में दीपक से ज्यादा माहिर था, वो योनि के हर हिस्से का सही इस्तेमाल जानता था।

“सर गांड मार ली आपने?” धीरज ने मुझे चोदते हुए हांफते हुए से दीपक से पूछा.
“नहीं यार, गया ही नहीं, बहुत टाइट है इसकी, गांड से कुंवारी है!” दीपक बोला.

“तो कोई बात नहीं सर, गांड की सील हम तोड़ देंगे!” धीरज खुशी से पागल होते हुए बोला.
मुझे गांड से कुंवारी जान कर धीरज की उत्तेजना सातवे आसमान पे थी, वो धक्के तेज करते हुए मेरे अंदर ही झड़ गया।

मैं अब भी प्यासी थी, जो करना चाहती थी, वो तो नहीं हुआ, 3सम नहीं हुआ।
बस दो मर्दों ने एक बिस्तर पर बारी बारी मुझे चोदा।

दोनों निढाल हो मेरे दोनों तरफ लेट गए।

दीपक का हाथ रह रहकर बार बार मेरी चूत में जा रहा था; वो शायद फिर से गर्म होने को थे।

“धीरज निरोध दे!” दीपक ने हुक्म किया.

“सर, अब छोड़ भी दो बेचारी को, तीन बार तो चुद चुकी है एक ही रात में, कल नहीं चोदिएगा क्या?” धीरज मजाक करते हुए बोला.

“अबे तेरी बहन लगती है क्या साले, नंगी पड़ी है, जितनी बार चाहे चोदूंगा इस छिनाल को! मैं तो कहता हूं तू भी जल्दी तैयार कर अपना लौड़ा! सुबह होने में ज्यादा वक्त नहीं बचा है, जितना चोद सकता है चोद ले, कल का क्या पता!”

“सर कल होली है, इसे भांग पिला के … रात और दिन दोनों रंगीन करेंगे.”

दीपक की मुझे जी भर चोदने को लालसा सुन मैं अपना आपा खोती जा रही थी.
मन तो किया उसे पटक के उसके लौड़े पर सवार हो जाऊं.
पर नाटक में जो मजा मिल रहा था, वो खराब हो जाता।

धीरज ने निरोध निकाल के दीपक को दिया और दीपक ने पहन मुझे घोड़ी बना दिया और सट से लौड़ा फिर अंदर!

लौड़ा मेरे बच्चेदानी पर टकरा रहा था.
मुझे इतना मजा आ रहा था कि 3सम ना होने का गम नहीं था।

मैं अपनी गांड आगे पीछे हिला हिला के दीपक से उसकी रण्डी की तरह चुद रही थी।
दीपक भी मेरी चूत के पूरे मजे ले रहे थे.

वो दूसरे ही पल आगे झुके और उन्होंने मेरी दोनों चूचियां अपनी हथेलियों में भर ली।
चूचियां जोर से मसलते हुए वो और भी तेज मुझे चोदने लगे, जैसे इंजन के पिस्टन चलता है, उनका मोटा लंड मेरी चूत के अंदर बाहर हो रहा था।

अचानक ही वो रुके, अपना लंड बाहर निकाला और एक और जोरदार धक्के के साथ दोबारा अंदर पेल दिया।

वो पांच मिनट तक यूंही बाहर निकालकर और फिर एक जोर से झटके के साथ अंदर पेलते रहे।
उनकी यह क्रिया मुझे बहुत मज़ा दे रही थी, मेरी मादक आहों से धीरज भी मजे ले रहा था और अपना लौड़ा हिला के खड़ा करने की कोशिश कर रहा था।

मैं कुतिया बनी, बेशर्मों की तरह चुद रही थी।

दीपक ने मेरे बाल पकड़े और मुझे अपनी ओर खींचा, अब वो फिर स्पीड पकड़ने लगे और जोर जोर से धक्के लगा के मुझे चोदने लगे।
कुछ ही देर में वो आह के साथ मेरे अंदर झड़ गए।

धीरज का लंड अब तक तैयार नहीं हुआ था।

“बहनचोद और चोद रण्डी रोशनी को दो बार, देख अब खड़ा नहीं हो रहा तेरा … उसे एक बार चोदा होता तो इसे दोबारा चोद पाता तू!”
दीपक धीरज का मखौल उड़ाते हुए तृप्त हुए बिस्तर पर लेट गए।

धीरज चिढ़ कर बाथरूम चला गया।

सुबह के पांच बज रहे थे, मैं अब भी नहीं झड़ी थी।

दीपक ने मुझे कपड़े पहनाए।

धीरज के बाथरूम से बाहर निकलते ही दीपक ने धीरज को मुझे मेरे कमरे तक वापिस छोड़ आने को कहा।

रात पार्टी देर तक चली थी और सभी भंड थे इसलिए किसी के भी जल्दी उठने की संभावना नहीं थी।
धीरज सबके के उठने से पहले मुझे मेरे कमरे तक ले गए, मेरी जींस से चाबी निकाली तो देखा की मेरी जींस में भी निरोध थे।

उसे निरोध के लिए कमरे से बाहर जाकर वक्त बर्बाद करने पर दुख हुआ, उसे लगा कि दीपक ने मुझे उससे पहले चोद के, उसके साथ नाइंसाफी की।

कमरे का दरवाजा खोल, उन्होंने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया।

तीन चुदाई के बाद थकी मांदी रोशनी, अब भी चैन से सो रही थी।
मेरी भी लेटते ही आंख लग गई।

होली खेलने का समय सुबह आठ से बारह बजे तक का था।
मैं भी कब सोई मुझे खबर नहीं।

मेरी नींद तब टूटी जब धीरज के धक्कों से बिस्तर फिर हिलने लगा.
वो रोशनी को एक टांग हवा में उठा के उसे सुबह सुबह चोद रहा था।
शायद उसने बाथरूम में जाकर खड़ा करने की दवा ली थी।

रोशनी भी मादक आवाजें निकाल रही थी- आआह आआ धीरज … आराम से चोदो!
धीरज पूरे जोश में था, उसकी जवानी पर दीपक ने प्रश्न चिन्ह जो लगाया था, मानो रोशनी को बेरहमी से चोद के वो अपनी मर्दानगी खुद को साबित करना चाहता हो!

धीरज ने रोशनी की दोनों टांगें अपने कंधों पर रख ली और लगा जोरदार धक्के लगाने!
उसका लौड़ा शांत ही नहीं हो रहा था.

रोशनी भी चुद चुद के थक गई थी, रोशनी ने कहा- लाओ मेरे मुंह में दे दो!
धीरज ने उसे चुप कराते हुए कहा- चुप कर … आज तेरी चूत फाड़नी है … आआह आआआ आह!
“ले साली चुद … यही चाहती है ना तू दिन रात … दीपक और मुझसे चुदना …”
ये कहकर धीरज के धक्के और जोरदार हो गए, रोशनी दर्द से चिल्ला रही थी।

सुबह के सात बज रहे थे, जाने कब से धीरज बेरहमी से रोशनी को चोद रहा था।

मैंने नींद खुलने का नाटक किया और अलसाई आँखों से दीपक और रोशनी की तरफ देखा।

रोशनी आह आह की आवाजें निकाल दर्द और मजे के साथ चिल्लाते हुए चुद रही थी।

मैंने रोशनी की ओर देख कर अनजान बनते हुए पूछा- क्या ये तुम्हारी मर्जी से हो रहा है?

रोशनी इससे पहले कुछ बोलती … धीरज ने हांफते हुए कहा- हां … रोशनी हर हफ्ते मुझसे चुदती है और मेरा लौड़ा चूसती है, अपनी मर्जी से, तुम्हें भी चुदना है तो बताओ?

मैंने रोशनी की तरफ देख, उसकी हामी होने का इशारा देखना चाहा.
रोशनी ने अपनी पलकें झुका और अपना हाथ मेरे हाथ पे रख के हामी में सिर हिलाया।

रात भर की चुदाई के बाद मेरा होली के कार्यक्रम में भाग लेने का बिल्कुल मन नहीं था।

मैं अपने सामने ये सब होते हुए को दरकिनार कर बाथरूम चली गई फ्रेश होने!
रात भर की चुदाई के बाद बदन थक गया था, पर चुदने की इच्छा खत्म नहीं हुई थी।

तभी याद आया कि दीपक और धीरज मुझे भांग पिला के फिर से चोदने की योजना बनाए बैठे हैं।

ऐसे में मैं चुदने से पीछे कैसे हट सकती थी।
आखिर मेरा जन्म ही अलग अलग मर्दों से चुदने के लिए हुआ है।
मैंने कभी किसी लौड़े को निराश ना करने का प्रण लिया है।

यही सोच मैं नहा धोकर बाहर आ गई।

तब तक धीरज जा चुके थे।
मेरे निकलते ही, रोशनी बाथरूम में चली गई।

होली का कार्यक्रम आठ बजे शुरू होना था।
मैंने अपना सफेद लेगिंग से बना, गहरे गले का ब्लाउज पहना और नाड़ा बांध कर हल्की गुलाबी साड़ी नाड़े के इर्द-गिर्द लपेट ली।

अंदर मैंने न ब्रा पहनी और ना ही चड्डी।
मेरा ब्लाउज मुश्किल से मेरे मोटे मोटे चूचों को गोलाइयां ढक पा रहा था।
ऊपर से सफेद होने के कारण, मेरे हल्के भूरे चुचूक अंदर से साफ दिखाई पड़ रहे थे।

मैंने पल्लू से अपनी जवानी ढकी.

तब तक रोशनी नहा धोकर आ गई।
वो तैयार होने लगी तो मैंने उससे पूछा- वो सब क्या था, धीरज के पास कमरे की चाबी कैसे आई, वो अंदर कैसे आया?

“तुम्हें क्या कुछ नहीं याद? कल रात भी धीरज हमारे कमरे में आया था, तुम जब आई कमरे में, तब दीपक और धीरज दोनों यहां थे.” रोशनी ने आधी बात छिपाते हुए मुझे बताया।

“देखो कल तुम्हें बहुत चढ़ गई थी, तो दीपक तुम्हें छोड़ने आए थे कमरे तक, तुम तो यहीं बिस्तर पर थी, जब रात धीरज ने मुझे दो बार चोदा. मेरा और धीरज का चक्कर चल रहा है. हम अक्सर दफ्तर के बाद मिलते हैं.” रोशनी ने कहानी बनाई.

“और दीपक? क्या उसके साथ भी …” मैंने दोबारा पूछा.
“अरे नहीं … वो तो गर्मी में धीरज कुछ भी बोल देता है, दीपक तुम्हें छोड़ कर चले गए थे, शायद मुझसे ही कमरा खुला रह गया हो! और धीरज को सुबह गर्मी लगी तो वो अपनी प्यास बुझाने मेरे पास आ गए, इसमें क्या गलत है?”

रोशनी अपनी रंडीपने की सारी बातें छिपा गई, वो नहीं जानती थी कि मैंने सब अपनी आँखों से देखा।

मैंने दोबारा रोशनी से नहीं पूछा, वरना उसे शक होता।

रोशनी भी बातों बातों में तैयार हो चुकी थी, उसने फूल पत्ती वाली एक पीले रंग की शिफॉन की साड़ी पहनी थी।

मुझे गौर से देखते ही बोली- आज तो लगता है बाहर लाशों के ढेर लगने वाले हैं, तुम पर कई लोग अपनी जान गंवाने वाले हैं।
मैं भी शरमा गई- धत्त, चलो अब बहुत देर हो गई है पहले ही!

रोशनी और मैं दो अप्सराओं की तरह अपने कमरे से बाहर आई और बगीचे में जहां रंग खेलने का इंतजाम था, वहाँ चल दी।

रास्ते में जितने लड़कों ने हमें देखा, देखते ही रह गए।

दीपक और धीरज पहले से ही वहाँ पहुंच चुके थे, सब मस्ती में होली खेल रहे थे.

तभी दीपक अपने हाथों में गुलाल लिए मेरे पास आए- क्या इजाजत है?
मन मन में मैं सोचने लगी, रात को तो आपको इजाजत की जरूरत नहीं पड़ी, जब मुझे रगड़ के चोद दिया। और अब गालों को छूने की इजाजत मांग रहे हैं।

मैंने शरमा के हामी भर दी.

फिर क्या था … दीपक के रंग लगाते ही सब मुझ पर टूट पड़े रंग लगाने को …
लड़कों की एक टोली ने मुझे घेर लिया और झपट्टा मार मुझे जहां तहां रंग लगाने लगे.

कुछ हाथ मुझे मेरे बड़े चूचों पर भी महसूस हुए, कुछ हाथ ब्लाउज के अंदर तक चले गए।
एक लड़का नीचे बैठ मेरी साड़ी के अंदर घुस गया, उसे तो जैसे जन्नत दिख गई, मैंने चड्डी जो नहीं पहनी थी।

उसने रंग लगे हाथ से मेरी चूत भींच दी.

मर्दों से घिरे घेरे में क्या हो रहा था … बाहर किसी को कोई खबर नहीं थी।

सबके चेहरे इतने रंगे हुए थे कि कोई पहचान में नहीं आ रहा था, मैं नहीं जान पा रही थी कि किस के हाथ कहां कहां मुझे छू रहे हैं.

बहुत से हाथ मुझे मेरी कमर और नाभि पर महसूस हुए।

तभी किसी ने मेरी चूचियां भींच दी, मैं अपने दो हाथों से कितने हाथों को रोकती.. और क्यों रोकती, मुझे तो मर्दों से रगड़वाना बहुत पसंद है।

नीचे बैठे लड़के ने मेरी टांगें अंदर तक रंग दी और चूमने लगा।

किसी ने मेरे चूचे मेरे ब्लाउज/चोली में से बाहर निकाल लिए.
अब एक दो नहीं सारे हाथ मेरे चूचे रंगने लगे, दबाने लगे।

मैं हरे पीले नीले गुलाबी और लाल रंग से पूरी तरह रंग चुकी थी।

उधर रोशनी के साथ भी यही सब हो रहा था, उसे भी लड़कों के एक गुट घेरे खड़ा था और वो सबके बीच मजे ले रही थी।

तभी कुछ नई लड़कियां तैयार होकर बगीचे में आई, सबने मुझे छोड़ उनका रुख किया.
दीपक दरियादिली दिखाते हुए मेरे आगे आ गए ताकि मैं अपने कपड़े ठीक कर सकूं।

ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी अलग ही सोच में ये सब कर रहे हैं.

तभी मुझे याद आया कि रोशनी की तरह मुझे भी अपनी परमानेंट रण्डी बनाना चाहते हैं इसीलिए ये सब दिखावा हो रहा है।

अलग अलग मर्दों से खेलना मेरा शौक रहा है, ऐसे में किसी एक की रण्डी बनके रहना मुझे मंजूर नहीं था इसलिए मैंने दीपक को भाव नहीं दिया।

अब दीपक अपनी दूसरी चाल चलते हुए बोले- तुम ठीक हो, जाओ कुछ खा पी लो, वहां ठंडाई भी है बिना भांग की!
धीरज भी रोशनी को मसल कर दीपक के पास लौट आए थे।

धीरज मेरे गालों पे रंग लगाते हुए बोले- कोई जगह ही नहीं बची तुम्हें तो रंग लगाने की, ब्लाउज के अंदर तक रंग लगा है, बताओ अब मैं कहां लगाऊं?
वो ऐसे बात कर रहे थे जैसे रात कुछ हुआ ही ना हो हमारे बीच।

मैंने गर्दन टेढ़ी कर गला दिखाकर उन्हें उकसाते हुए बोली- यहां लगा दीजिए।
और धीरज रंग लगाते हुए मुझे चोक करके चोदने के ख्यालों में चले गए।

उनका ख्याल तब टूटा जब दीपक ने धीरज के कंधे पर हाथ रख के बोला- गजब की खूबसूरत लग रही हैं आज आप!

मैंने मुस्कुरा के धन्यवाद किया और उनसे इजाजत ली- जी थैंक यू, मैं ज़रा ठंडाई लेकर आती हूं!

मेरे जाते ही मैंने मद्धम सी धीरज की आह सुनी- अरे हमारी ठंडाई कब पियोगी?
मैंने अनसुना कर दिया, आगे चली गई.

ठंडाई के काउंटर पर भीड़ लगी थी, उन्होंने मुझे एक गिलास दिया, मैंने कुछ ही देर में गटक लिया।
इस तरह मैंने जाने कितने भांग वाली ठंडाई के ग्लास पिए।

मैं भांग के नशे में धुत्त होकर फिर से दीपक और धीरज से चुदने के सपने देख रही थी।
ये सब मेरे नशे में हुए बगैर संभव नहीं था।

अगला गिलास पीने को ही थी कि धीरज ने मेरा हाथ रोक दिया- अब बस करो, यही पीती रहोगी क्या?

मैं नशे में झूम रही थी, स्पीकर पर जोर जोर से गाने बज रहे थे।
मुझे नाचते हुए सभी मर्द अपने होने वाले आशिक जैसे दिखने लगे थे।

क्योंकि मैंने कभी भांग का सेवन उससे पहले नहीं किया था, मेरे लिए ये नया था।

मुझे किसी की कोई बात समझ नहीं आ रही थी, गाने की भी केवल धुन सुनाई दे रही थी,स्लो मोशन में, सब अजीब सा सुनाई दे रहा था।

तभी दीपक आया और मुझे सहारा देने लगा, धीरज और दीपक मुझे सहारा देने के बहाने अपने कमरे तक ले गए.
मैं भांग के नशे में मदमस्त थी पर देख पा रही थी कि आसपास क्या हो रहा है।

दोनों ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

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कृपया ध्यान दें: कहानी की मुख्य पात्र वीनस सभी घटनाओं में पूरी चेतना में थी और अपनी मर्जी से सब कर रही थी.
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