पड़ोस की गर्म भाभी की चुत चुदाई का मजा- 1

हिन्दी सेक्स स्टोरी साईट पर पढ़ें पड़ोस की गर्म भाभी को पटाने की कहानी. मेरे पड़ोस में वो नयी आयी थी और बहुत सुंदर थी वो! मैं उसे लाइन मारने लगा.

दोस्तो, मेरा नाम राजा है. मैं यह हिन्दी सेक्स स्टोरी साईट अन्तर्वासना कई वर्षों से पढ़ रहा हूँ.
मेरी एक कहानी
मेरी पहली चुदाई सेक्सी पड़ोसन संग
दो भागों में इस हिन्दी सेक्स स्टोरी साईट पर 19 जनवरी 2019 को प्रकाशित हो चुकी है.

मेरी देसी भाभी सेक्स कहानी में एक भाभी और मेरे बीच की चुदाई की रसभरी घटना का जिक्र किया गया है.

उन भाभी की उम्र 30 साल थी. मैं भाभी की डिटेल आपको बाद में देता हूँ, पहले मैं अपने बारे में बता देता हूँ.

मैं उस समय कॉलेज के सेकंड ईयर में था. उस समय मेरी उम्र 21 साल थी. मैं 5 फिट 6 इंच का हूं और मेरा लंड 7 इंच का है. कॉलेज में मेरा पहला साल ऐसे ही निकल गया. मैं सोचता था कि कोई लड़की से सैटिंग हो जाए, मगर नहीं हो पाई.

फिर जब मैं सेकंड ईयर में आया, तब मेरे घर के दो तीन मकान छोड़कर एक भाभी रहने आईं.
शुरू शुरू में जब मैंने उन्हें देखा, तो देखता ही रह गया. सच में भाभी एक कयामत थीं.

मेरे घर के सामने मेरे मामा का मकान है. मैं अपनी नानी के घर में रहता हूं. चूंकि बचपन में मेरे पिताजी का देहांत हो चुका था, जिसके चलते मैं और मम्मी मामा के घर रहने आ गए.

एक दिन मैं अपने मामा की छत पर ऐसे ही टहल रहा था, तब वो भाभी मुझे दिखाई दीं.
भाभी छत पर कपड़े सुखाने के लिए आई थीं.

मैं भाभी को देखने लगा और उनकी नजरों से मेरी नजरें मिलनी शुरू हुईं तो मैं भाभी को लाईन मारने लगा.

भाभी ने ये देख कर अनदेखा कर दिया.

इतने में मनोज छत पर आ गया.
मनोज मेरा दोस्त था और वो मेरे मामा के यहां किरायेदार था.

उसने मुझे भाभी की डिटेल बताना शुरू की. भाभी का नाम सावी था.
मनोज ने यह भी बताया कि भाभी अपने पति को छोड़ कर दूसरे के साथ रह रही थीं. उस पर तुर्रा ये था कि वो दूसरा आदमी भी उनको छोड़कर कहीं बाहर कमाने के लिए चला गया था.
फिलहाल भाभी के पास लंड की कमी थी.

मुझे मनोज से इतनी जानकारी इसलिए मिल सकी क्योंकि पहले वो अपनी मम्मी पापा और चाचा के साथ किसी दूसरे मकान में किराए से रहता था और उधर ही ये भाभी भी किराए से रहती थीं.

मनोज मुझे कुछ ज्यादा ही जोश में जानकारी देने लगा था, तो मैंने उसके सामने चुप रहने का ही तय किया और उसे आगे बताने से मना करने के लिए कहा.

मैंने मनोज से कहा कि चल रहने दे, तुम मुझे ये सब क्यों बता रहा है?

मैंने मनोज के सामने यह बात टाल दी तो वो भी चुप हो गया और चला गया.

मेरे दिमाग में अब सावी भाभी ही घूमने लगी थीं. उनका अकेला रहना मुझे एक सुगम रास्ते के रूप में दिखाई दे रहा था.

मैंने भाभी की आवाजाही पर ध्यान देना शुरू कर दिया. मैंने देखा कि सावी भाभी सुबह सुबह किसी कंपनी में काम के लिए जाती थीं.

मैं उनको जाते हुए देखता रहता था. कभी कभी भाभी की निगाहें मुझसे मिल जातीं तो वो मुझे अनदेखा करके निकल जातीं.

मेरे पड़ोस में एक लड़का किराए से रहता था, उसका नाम डब्लू था, मतलब उसको प्यार से डब्लू कहते थे. उसका असली नाम अभिषेक सिंह था. डब्लू रीवा का रहने वाला था.

उसके घर के दरवाजे से सावी भाभी का घर साफ़ दिखाई देता था.

मैं जब डब्लू के घर गया तो वो हिन्दी सेक्स स्टोरी साईट अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ रहा था.
मैं वहां बैठकर सावी भाभी को ताड़ने लगा.

यह मेरा रोज का काम काम हो गया.
मेरे उधर रोज बैठने से अब सावी भाभी ने भी यह नोटिस कर लिया था कि मैं उनको देखता हूं.

कुछ दिनों बाद भूसे ने आग पकड़ ली और अब भाभी भी मुझे धीरे धीरे देखने लगीं.

अब सुबह वो कंपनी जातीं तो मुझे देख कर मुस्कुराकर चली जातीं.
मैं समझ गया कि मेरी दाल जल्दी ही गल जाएगी.

ऐसे ही कुछ दिन तक चलता रहा.
अब नवरात्र आ गई, हमारे मोहल्ले में नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. इसी के चलते कुछ कार्यक्रम भी होते हैं.

उधर भाभी भी आती थीं, मेरी निगाह तो बस उनके ऊपर ही टिकी रहती थी.
मैं उन्हें नशीली निगाहों से देखता, तो भाभी भी मुझे देख कर हंस दिया करती थीं.

ऐसे ही नवरात्रि में डांडिया आदि हुआ और मेरा उस दौरान एक दो बार भाभी से स्पर्श भी हुआ.
इससे भाभी का मेरे प्रति आकर्षण और ज्यादा बढ़ गया था.

एक दिन सुबह सुबह मैं सावी भाभी से पहले रास्ते में जाकर खड़ा हो गया.

जब भाभी आईं, तो मैं उनको देख कर मुस्कुरा दिया.
भाभी मुझे देखकर कहने लगीं- आप यहां क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- बस भाभी जी, आपके आने का इन्तजार कर रहा था.

भाभी- क्यों?
मैंने बेधड़क कह दिया कि मुझे आपका मोबाइल नंबर चाहिए.

उन्होंने मुस्कुरा कर कहा- अभी नहीं, शाम को दे दूंगी.
मैंने कहा- ठीक है भाभी जी, मैं इंतजार करूंगा.

वो इठला कर मुस्कुरा दीं और गांड मटकाती हुई आगे बढ़ गईं.

अपनी आंखों से भाभी के ओझल होने तक मैं उनकी मटकती गांड को निहारता रहा.
फिर मैं वहां से आ गया.

मुझे नवरात्रि के पंडाल आदि का बचा हुआ कुछ सामान वापिस देना था, उसे देने चला गया.
जब मैं वापस आया तब तक भाभी जी घर वापस आ चुकी थीं और मैं उनसे फोन नम्बर नहीं ले पाया.

फिर भी मैं डब्लू के घर के पास गया तो भाभी जी दिख गईं. मैंने उनकी आंखों में झांका तो उन्होंने मुस्कुरा कर सर हिलाया और इशारा दिया कि कुछ देर बाद दे दूंगी.

मैं डब्लू के घर से अपने घर चला गया और भाभी से नम्बर मिलने का इंतजार करने लगा.

अब शाम हो चुकी थी, मैं भाभी का इंतजार कर रहा था कि अब वो मुझे मोबाइल नंबर कैसे देंगी.

कुछ देर बाद मैं उनके घर के सामने से गाना गुनगुनाता हुआ निकला, तो भाभी को मेरे नजदीक होने का अहसास हो गया.

कुछ समय बाद रात के करीब 8:00 बजे काले सूट में भाभी गली के बाहर आईं और कुछ फैंक कर मेरी तरफ देख कर मुस्कुराती हुई चली गईं.
मैं समझ गया कि मेरा काम बन गया.

उनके जाते ही मैंने इधर उधर देखा और उसी जगह पर गया, जहां भाभी ने कुछ फैंका था.

मैंने देखा तो वो एक पेन का ढक्कन था. मैंने उसे उठाया और देखा तो उसके अन्दर एक कागज घुसा था.
उस कागज़ को मैंने निकाला और खोल कर देखा, तो कागज पर मोबाइल नंबर लिखा था.

मैंने जल्दी से वो नंबर डायल किया, तो उधर से आवाज आई.
‘हैलो कौन!’
मैंने बोला- मैं राजा बोल रहा हूं.

भाभी कहने लगीं- हम्म … अब बताइए क्यों चाहिए था नंबर?
मैंने कहा- ऐसे ही, मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूँ.

भाभी ने कहा- क्या करोगे दोस्ती करके?
मैंने कहा- भाभी आप मुझे अच्छी लगती हो और मैं आपसे अपने दिल की बात कहना चाहता था. इसी लिए आपका नम्बर लेना चाहता था.

उन्होंने कहा- क्या कहना चाहते हो और मुझमें ऐसा क्या ख़ास है?
पहले तो मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या कहूँ. मगर फिर मैंने कहा कि आपका सब कुछ मस्त है भाभी.

भाभी ने तेज आवाज में मेरी खिंचाई की- हम्म … तो आपको मेरा सब कुछ मस्त लगता है … इसका मतलब क्या समझूँ कि आपको क्या क्या मस्त लगता है?
मैंने सकपकाते हुए कहा- जब आप चश्मा लगाती हो, तो बहुत खूबसूरत लगती हो.

सावी भाभी हंसने लगीं.

मैंने कहा- इसमें हंसने वाली कौन सी बात है?
सावी भाभी ‌ने कहा- आप मुझे घूरते क्यों हो?

मैंने कहा- भाभी, जब आप हो ही इतनी खूबसूरत … तो घूरना ही पड़ेगा ना!
भाभी फिर से हंसने लगीं और बोलीं- मेरा नाम सावी है, आप मुझे सावी ही बुलाओ.

मैंने कहा- ओके … सावी मैं एक बात बोलूं. मैं आपसे प्यार करने लगा हूं.
सावी भाभी फिर से टोन बदल कर बोलीं- आपको ये कहते हुए शर्म नहीं आती. मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और आपकी मेरे लिए ये सोच है!

मैंने कहा- प्यार में ये सब नहीं देखा जाता है मेरी जान!
भाभी ‘मेरी जान …’ शब्द सुनकर हंसने लगीं.

मैं समझ गया कि लौंडिया हंसी तो फंसी.

कुछ देर बात होने के बाद फोन बंद हो गया और मैं घर आ गया.

ऐसे ही दो-तीन दिन निकल गए. अब मैं सावी भाभी से रोज बात करने लगा.

एक दिन सावी भाभी ने मुझे ‘आई लव यू …’ कह दिया.
मैंने भी ‘आई लव यू टू …’ कहा.

फिर वो मुझसे बोलीं- अब बताओ क्या प्रोग्राम है?
मैंने भाभी से कहा- मैं आपसे मिलना चाहता हूं.

सावी ने कहा- मुझसे क्यों मिलना चाहते हो?
मैंने कहा- मैं आपसे प्यार करता हूं इसलिए नजदीक से आपका अहसास करना चाहता हूँ.

सावी भाभी ने हंसकर कहा- हम्म … मिलने की इतनी जल्दी क्या है?
मैंने कहा- मैं साफ़ बोल दूँ?

भाभी भी नशीली आवाज में बोलीं- हां बोल दो.
मैंने साफ़ शब्दों में खुल कर कहा- मैं आपको चोदना चाहता हूं.

सावी भाभी कहने लगीं- छी: गंदी बात मत करो.
मैंने कहा- क्यों ना करूं … आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो.

सावी भाभी ने एक पल सोचा और फिर कहा कि ठीक है बाबा, ठीक है … जब मैं फ्री रहूंगी, तब तुम्हें कॉल कर दूंगी.
मैं समझ गया कि भाभी को खुद लंड की जरूरत है इसलिए इतनी जल्दी मान गईं.

ऐसे ही दो दिन निकल गए.
तीसरे दिन सावी भाभी का फोन आया और उन्होंने बताया कि आज रात वो मुझसे मिलेंगी.

मैंने कहा- कहां?
सावी ने कहा- मेरे घर पर ही.

यह बात सुनकर मैं खुश हो गया कि सावी भाभी के घर में ही उनकी चुत चुदाई का अवसर मिल गया है.
मैं खुशी से झूम उठा और उसी टाइम मेरा 7 इंच का लौड़ा खड़ा हो गया.

मैं अपने लंड महाराज को हाथ से दबा कर तसल्ली देता रहा कि मान जा भोसड़ी के, आज रात को तुझे तेरी रानी के दर्शन करवा दूंगा.

अब शाम हो गई, मैं खाना खाकर बाहर टहलने निकल गया.

मैंने सावी भाभी को फोन लगाया, तो उन्होंने कहा- रात 11:00 बजे आ जाना.

मैंने ओके कहा और घर आकर मोबाइल चलाता रहा.

जब 11:00 बजे, तो मैंने देखा कि मम्मी और भाई सो चुके हैं.

मैं धीरे से उठा और कमरे का दरवाजा खोलकर पहले मैं छत पर गया और सावी भाभी को फोन लगाया.

उधर से आवाज आई- हां आ जाओ.

फिर मैं इधर उधर देखता हुआ, धीरे से घर से बाहर निकल गया.

जब मैं भाभी के घर के दरवाजे पर गया तो उनका दरवाजा उड़का हुआ था. मैं अन्दर धीरे से घुस गया और अन्दर से दरवाजा लॉक कर दिया.

अन्दर अंधेरा था, तो मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया. मैं आगे को बढ़ा तो पलंग से टकरा गया.

तभी सावी भाभी ने लाइट चालू कर दी.

लाइट चालू हुई तो मैंने पलंग की ओर देखा.
मेरे सामने सुहागरात जैसा बिस्तर सजा हुआ था और सावी भाभी किसी दुल्हन की तरह सज संवरकर बैठी थीं.
उन्होंने लाल साड़ी पहनी हुई थी और फुल मेकअप में घूंघट निकाले हुए बैठी थीं.

मैंने भाभी को देखा तो बस देखता ही रह गया.
अपने सामने चुदने को तैयार दुल्हन को देख कर मेरी वासना जाग गई और मेरा लौड़ा खड़ा हो गया.

सावी भाभी ने मेरे टनटनाते हुए लंड को देख लिया और उन्होंने मुस्कुरा कर कहा- आओ मेरी जान … मेरे करीब आ जाओ.

मैं धीरे-धीरे सावी भाभी के पास जाकर बैठ गया.
आज मेरी तो मानो लॉटरी लग गई थी.

मैं समझ गया था कि भाभी खुद प्यासी हैं और आज तो मेरे लंड के लिए एक नई दुल्हन बन कर चुदाई के लिए सुहागसेज पर बैठी हैं.

मेरा 7 इंच का लौड़ा एकदम सख्त हो गया था और मेरी पैंट फाड़ कर बाहर आने के लिए बेताब था.

मैंने बिस्तर पर बैठ कर धीरे से सावी भाभी का घूंघट उठाया तो मैं उन्हें देखता ही रह गया.

मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत की किसी हूर के पहलू में पहुंच गया हूं.

उसी पल हम दोनों ने एक दूसरे को प्यासी निगाहों से देखा और मैं सावी भाभी के गले से लग गया.
सावी भाभी ने अपनी बांहें फैला कर मुझे कसकर गले से लगा लिया.

मैं उनको झुकाता चला गया और उन्हें लेटा कर उनके होंठों पर किस करने लगा.

किसी औरत या लड़की के साथ अब तक का ये मेरा पहला किस था.
मैंने भाभी के होंठों से होंठ मिला दिए.

मेरा 7 इंच का लौड़ा पैंट में तंबू बनाए अकड़ा हुआ था जिसे सावी भाभी ने अपने हाथों से हल्का सा दबा दिया.
लंड को भाभी के हाथों का स्पर्श मिला, तो मेरे मुँह से ‘आह.. हहह …’ निकल गई.

भाभी सुरसुराईं- बड़ा कड़क कर रखा है.
मैंने कहा- हां मेरी जान, आज से ये आपकी सेवा के लिए ही है. मुझे इसे बाहर निकाल लेने की आज्ञा दो.

भाभी ने लंड छोड़ दिया.
फिर जैसे ही मैंने मेरा लौड़ा बाहर निकाला, सावी भाभी लंड देखकर कहने लगीं- इतना बड़ा हथियार … आह मेरी जान, आज तो मजा आ जाएगा.

हिन्दी सेक्स स्टोरी साईट पर कहानी के अगले भाग में बताऊंगा कैसे मैंने सावी की चुत चोद चोद कर उनका भुर्ता बनाया.
मेरी इस देसी सेक्स कहानी के लिए आप मुझे मेल कर सकते हैं.
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हिन्दी सेक्स स्टोरी साईट पर कहानी जारी है.

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